गुरुवार, 16 जुलाई 2009

जिंदगी और मैं

मैं मनमौजी मस्त बेफिक्र और खुशहाल। जिन्दगी गम्भीर व्यवस्थित चिंतनशील और परिश्रमी।
मैने जब भी जिंदगी को अपने साथ रखना चाहा वह मुकर गई और जिंदगी ने जब मुझे साथ रक्खा मैं दुृःखी हुआ। मेरी यायावर प्रवृत्ति मुझे दुःखी होने से बचा लेती है पर जिंदगी रोज रोज पीछे कहीं दूर छूटती जाती है।

मंगलवार, 5 मई 2009

पिताजी

एक सुबह जब मैं हैदराबाद के नामपल्ली रेलवे स्टेशन पर था, पूरब में सूर्य अपने नए संदेशों के साथ सुबह होने की घोषणा कर रहा था कि मेरे जीवन में शाम होने की ख़बर आई।
मेरे बाबूजी जो कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे, अब नही रहे .........

बाबूजी का नही रहना लोगों के लिए एक सामान्य घटना थी, पर मैं सामान्य नही रहा। अब भी नही हूँ ......
पर तब और अब के असामान्यता में अन्तर है ...